नासमझ था मैं, बहुत नादान था
समाज के नियमों से अनजान था
सबको एक बराबर का दर्जा दिया
अपनेपन पर मुझे अभिमान था
हो गया चकनाचूर दिल ये मेरा
जो मुश्किलों में भी मेरा गुमान था
रूठ गया अब तो हर रिश्ता मुझसे
जो कल तक मेरे सर का मान था
सर माथे ले लिए सब आरोप मैंने
अपनों ने ही दिया मौत का फरमान था
कह भी ना सका मैं कुछ भी तब
छीन लिए लफ्ज़, किया बेज़ुबान था
चाह कर मौत ने नहीं अपनाया मुझे
शायद मेरा वक़्त भी बेईमान था
आ लौट चल वापस रवि उस जहां से
जहाँ हर कदम पर बिकता ईमान था
- रवि गोयल की कलम से
समाज के नियमों से अनजान था
सबको एक बराबर का दर्जा दिया
अपनेपन पर मुझे अभिमान था
हो गया चकनाचूर दिल ये मेरा
जो मुश्किलों में भी मेरा गुमान था
रूठ गया अब तो हर रिश्ता मुझसे
जो कल तक मेरे सर का मान था
सर माथे ले लिए सब आरोप मैंने
अपनों ने ही दिया मौत का फरमान था
कह भी ना सका मैं कुछ भी तब
छीन लिए लफ्ज़, किया बेज़ुबान था
चाह कर मौत ने नहीं अपनाया मुझे
शायद मेरा वक़्त भी बेईमान था
आ लौट चल वापस रवि उस जहां से
जहाँ हर कदम पर बिकता ईमान था
- रवि गोयल की कलम से
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