सोच रही है मिट्टी आखिर
क्या है उसका काम
क्या है उसका दाम
कभी बनाते मूर्ति उससे
कभी बनाते घर और बाम
कभी रौंदते पैरों तले
कभी आती शमशान में काम
सोच रही है मिट्टी आखिर
क्या है उसका काम
क्या है उसका दाम
कभी वो मंदिर में पूजी जाती
कभी रास्ते पर उड़ती धूल समान
कभी उगाती फल और सब्जी
जिनके लगाते सब हैं दाम
सोच रही है मिट्टी आखिर
क्या है उसका काम
क्या है उसका दाम
कभी सोचती क्यों इंसान को जन्मा
देता नहीं जो मान सम्मान
एक दिन मुझ में ही मिल जाना उसको
होना है उसका काम तमाम
सोच रही है मिट्टी आखिर
क्या है उसका काम
क्या है उसका दाम
कभी रोकती बाढ़ की आपदा
कभी रोकती वो अकाल
भुकमरी को न फैलने देती
करती उसकी वो रोकथाम
सोच रही है मिट्टी आखिर
क्या है उसका काम
क्या है उसका दाम
रवि गोयल की कलम से
क्या है उसका काम
क्या है उसका दाम
कभी बनाते मूर्ति उससे
कभी बनाते घर और बाम
कभी रौंदते पैरों तले
कभी आती शमशान में काम
सोच रही है मिट्टी आखिर
क्या है उसका काम
क्या है उसका दाम
कभी वो मंदिर में पूजी जाती
कभी रास्ते पर उड़ती धूल समान
कभी उगाती फल और सब्जी
जिनके लगाते सब हैं दाम
सोच रही है मिट्टी आखिर
क्या है उसका काम
क्या है उसका दाम
कभी सोचती क्यों इंसान को जन्मा
देता नहीं जो मान सम्मान
एक दिन मुझ में ही मिल जाना उसको
होना है उसका काम तमाम
सोच रही है मिट्टी आखिर
क्या है उसका काम
क्या है उसका दाम
कभी रोकती बाढ़ की आपदा
कभी रोकती वो अकाल
भुकमरी को न फैलने देती
करती उसकी वो रोकथाम
सोच रही है मिट्टी आखिर
क्या है उसका काम
क्या है उसका दाम
रवि गोयल की कलम से
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