Wednesday, May 6, 2020

सोच रही है मिट्टी

सोच रही है मिट्टी आखिर
क्या है उसका काम
क्या है उसका दाम

कभी बनाते मूर्ति उससे
कभी बनाते घर और बाम
कभी रौंदते पैरों तले
कभी आती शमशान में काम
सोच रही है मिट्टी आखिर
क्या है उसका काम
क्या है उसका दाम

कभी वो मंदिर में पूजी जाती
कभी रास्ते पर उड़ती धूल समान
कभी उगाती फल और सब्जी
जिनके लगाते सब हैं दाम
सोच रही है मिट्टी आखिर
क्या है उसका काम
क्या है उसका दाम

कभी सोचती क्यों इंसान को जन्मा
देता नहीं जो मान सम्मान
एक दिन मुझ में ही मिल जाना उसको
होना है उसका काम तमाम
सोच रही है मिट्टी आखिर
क्या है उसका काम
क्या है उसका दाम

कभी रोकती बाढ़ की आपदा
कभी रोकती वो अकाल
भुकमरी को न फैलने देती
करती उसकी वो रोकथाम
सोच रही है मिट्टी आखिर
क्या है उसका काम
क्या है उसका दाम

रवि गोयल की कलम से

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