Wednesday, May 6, 2020

एक अलमारी ही तो हूँ मैं

एक अलमारी ही तो हूँ मैं

कभी सजाती थी साजो सामान
कभी बढ़ाती थी घर का मान
आती थी हर सदस्य को काम
अब हो गयी धूल मिट्टी मेरे नाम
एक अलमारी ही तो हूँ मैं

सबके बचपन की यादें मुझसे जुड़ी हैं
हर शख्श की जरूरतें मुझे हुई पूरी है
सबने पिरोई अपनी अपनी कड़ी है
पर अब लगता है पैदा हो गयी दूरी है
एक अलमारी ही तो हूँ मैं

फेंक दिया मुझको किसी कोने में
अब नहीं किसी को दिलचस्पी मेरे होने में
कपबोर्डस ने ले लिया मेरा स्थान
आती हूँ काम जानवरों के सोने में
एक अलमारी ही तो हूँ मैं

बड़े शौक से मुझको घर लाये थे
नया रंग भी मुझ पर पुतवाये थे
छोटे छोटे समान भी मुझ में समाये थे
बेच दिया मुझको मुझसे पैसे कमाये थे
एक अलमारी ही तो हूँ मैं

- गुफरान की कलम से

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